माँ लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी कहा जाता है। आज के समय में धन-वैभव के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा होता है। कलयुग में जिन देवों को सर्वाधिक पूजा जाता है उनमें से एक माँ लक्ष्मी जी हैं। दीवाली के दौरान पूजा के लिए लोगों को महा-लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिए। माँ लक्ष्मी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मी जी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। तो आइए दोस्तों ! हम आपको बताते हैं दिवाली महापर्व पर लक्ष्मी जी की पूजन विधि कैसे की जाए !
मां लक्ष्मी की महिमा :
1. धन और संपत्ति की देवी हैं मां लक्ष्मी !
2. माना जाता है कि समुद्र से इनका जन्म हुआ और इन्होंने श्री विष्णु भगवान से विवाह किया !
3. इनकी पूजा से धन की प्राप्ति होती है और साथ ही वैभव भी प्राप्त होता है !
माँ लक्ष्मी की पूजा करने से यह फल की प्राप्ति होगी :
1. इनकी पूजा से केवल धन ही नहीं, बल्कि नाम, यश भी मिलता है !
2. इनकी उपासना से दाम्पत्य जीवन भी बेहतर होता है !
3. कितनी भी धन की समस्या हो, अगर विधिवत लक्ष्मीजी की पूजा की जाए, तो धन मिलता ही है !
माँ लक्ष्मी के पूजन का नियम :
1. मां लक्ष्मी की पूजा सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर करनी चाहिए !
2. इनकी पूजा का उत्तम समय मध्य रात्रि है !
3. मां लक्ष्मी के उस प्रतिकृति की पूजा करनी चाहिए, जिसमें वह गुलाबी कमल के पुष्प पर बैठी हों और साथ ही उनके हाथों से धन बरस रहा हो !
4. मां लक्ष्मी को गुलाबी पुष्प, विशेषकर कमल चढ़ाना सर्वोत्तम रहता है !
5. मां लक्ष्मी के विशेष स्वरूप हैं, जिनकी उपासना शुक्रवार के दिन करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है !
माँ लक्ष्मी जी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी एवं पीले रंग का रेशमी वस्त्र है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल माँ को शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
इस तरह से तैयारी करें :
चौकी पर माँ लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। याद रहे कि माँ लक्ष्मी गणेश जी के दाहिनी ओर रहें। पूजा करने के लिए मूर्तियों के सामने होकर बैठें। कलश को लक्ष्मी जी के पास चावलों पर रखें।
नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का ऊपरी हिस्सा दिखाई दे व नारियल को कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।इसके बाद दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेश जी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इसके बाद बीच में सुपारी व चारों कोनों पर चावल की ढेरी रखें । सबसे ऊपर बीचों बीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। इसके बाद थालियों के लिए निम्न चीज़ों की व्यवस्था करें- ग्यारह दीपक, खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक । फिर इन थालियों के सामने बैठ जाएं और अपने परिवार के सदस्य को अपनी बाईं ओर बैठाएं । इसके अलावा अगर कोई बाहर का हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
पवित्रीकरण करें :
आप अपने हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें और उसके साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
आपने जिस जगह पर आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके यह मंत्र बोलें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
आचमन शुरू करें :
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। इसके बाद फिर से तिलक लगाएं । आपको पता है आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का विकास होता है।
आचमन करने के बाद आंख बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यह भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए महत्वपूर्ण है । उसके बाद हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम कीजिये ।
पूजन के लिए संकल्प :
संकल्प के लिए अपने हाथ में अक्षत , पुष्प ,जल और कुछ पैसे ले लीजिए। यह सब हाथ में रखकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। जिसमे सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन कीजिये । इसके लिए हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए। इसके बाद पूजा सामग्री चढ़ा दीजिये । फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए।
हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन कीजिये । फिर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए और सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए एवं पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए। सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित्त से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा शुरू कर लीजिये ।
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