दिवाली के त्यौहार की शुरुआत धनतेरस से होती है। कार्तिक मास में आता है। हिन्दू समाज में धनतेरस सुख-समृद्धि, यश और वैभव का पर्व माना जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर और आयुर्वेद के देव धन्वंतरि की पूजा का बड़ा महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाए जाने वाले इस महापर्व के बारे में स्कन्द पुराण में लिखा है कि इसी दिन देवताओं के वैद्य धन्वंतरि अमृत कलश सहित सागर मंथन से प्रकट हुए थे, जिस कारण इस दिन धनतेरस के साथ-साथ धन्वंतरि जयंती भी मनाई जाती है। तो आइए दोस्तों ! हम आपको धनतेरस की पौराणिक कथा के बारे में आपको बताते हैं।
धनतेरस की पौराणिक कथा :
धनतेरस से जुड़ी कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए।
शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।
बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।
वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए।
इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया।
इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
धनतेरस से सम्बन्धित दूसरी कथा :
बहुत पहले हंसराज नामक एक प्रतापी राजा था। एक बार वह अपने मित्रों, सैनिकों और अंगरक्षकों के साथ जंगल में शिकार करने गया। आगे चलकर राजा सबसे बिछड़कर गया और भटकते हुए एक अन्य राजा हेमराज के राज्य में पहुंच गया।
हेमराज ने थके-हारे हंसराज का भव्य स्वागत किया। उसी रात हेमराज के यहां पुत्र जन्म हुआ। इस खुशी के अवसर पर हेमराज ने राजकीय उत्सव में सम्मिलित होने के लिए आग्रह के साथ हंसराज को कुछ दिनों के लिए अपने यहां रोक लिया। बच्चे के छठवीं के दिन एक विचित्र घटना घटी। पूजा के समय देवी प्रकट हुई और बोली- आज इस शिशु की जो इतनी खुशियां मनाई जा रही हैं, यह अपने विवाह के चौथे दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।
इस भविष्यवाणी से सारे राज्य में शोक छा गया। सबके सब अचभित रह गए। इस शोक के समय हंसराज ने राजा हेमराज और उसके परिवार को कहा – मित्र, आप तनिक भी विचलित न हों। इस बालक की मैं रक्षा करूंगा। फिर हंसराज ने यमुना किनारे एक किला बनवाया और उसी के अंदर राजकुमार के पालन-पोषण की व्यवस्था कराई। इसके अतिरिक्त राजकुमार की प्राण रक्षा के लिए हंसराज ने सुयोग्य ब्राह्मणों से अनेक तांत्रिक अनुष्ठान, यज्ञ, मंत्रजाप आदि की भी व्यवस्था करा रखी थी।
धीर-धीरे राजकुमार युवा हुआ। उसकी सुंदरता एवं तेजस्विता की चर्चा सर्वत्र फैल गई। राजा हंसराज के कहने से हेमराज ने राजकुमार का विवाह भी कर दिया। जिस राजकुमारी से युवराज का विवाह हुआ था, वह साक्षात लक्ष्मी लगती थी। ऐसी सुंदर वर-वधू की जोड़ी जीवन में शायद किसी ने भी नहीं देखी थी।
कहे अनुसार विवाह के ठीक चौथे दिन यम के दूत राजकुमार के प्राण हरण करने आ पहुंचे और राजपरिवार खुशियां मनाने में मग्न थे। राजकुमार और राजकुमारी की छवि देखकर यमदूत भी विचलित हो उठे, किंतु राजकुमार के प्राणहरण का अप्रिय कार्य उन्हें करना ही पड़ा।
यमदूत जिस समय राजकुमार के प्राण लेकर चले, उस समय ऐसा हाहाकार मचा और दारुण दृश्य उपस्थित हुआ जिससे द्रवित होकर दूत भी स्वयं रोने लगे। इस घटना के कुछ समय पश्चात एक दिन यमराज ने प्रसन्न होकर अपने दूतों से पूछा- दूतों! तुम सब अनंत काल से पृथ्वी के जीवों का प्राणहरण करते आ रहे हो, क्या तुम्हें कभी किसी जीव पर दया आई है और मन में यह विचार उठा है कि इसे छोड़ देना चाहिए !
यम के दूत एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।यमराज ने उनके संकोच को भांपकर उन्हें उत्साहित किया- झिझको मत, अगर ऐसा प्रसंग आया हो, तो निर्भय होकर बताओ।इस पर एक दूत ने सिर झुकाकर निवेदन किया- मृत्युदेव, ऐसे प्रसंग तो कम ही आए हैं किंतु एक घटना अवश्य हुई है। यह कहते हुए दूत ने हेमराज के पुत्र के प्राणहरण की घटना सुना दी।
इस दु:खद प्रसंग से यमराज भी विचलित हो उठे। इसे लक्ष्य करके दूत बोला- नाथ! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे इस प्रकार की अकाल मृत्यु से प्राणियों को छुटकारा मिल जाए ! इस पर यमराज ने कहा- जीवन और मृत्यु सृष्टि का अटल नियम है तथा इसे बदला नहीं जा सकता किंतु धनतेरस को पूरे दिन का व्रत और यमुना में स्नान कर धन्वंतरि और यम का पूजन-दर्शन अकाल मृत्यु से बचाव कर सकता है।
यदि यह संभव न हो तो भी संध्या के समय घर के प्रवेश द्वार पर यम के नाम का एक दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। इससे असामयिक मृत्यु और रोग से मुक्त जीवन प्राप्त किया जा सकता है और तभी से ही धनतेरस के दिन धन्वंतरि के पूजन और प्रवेश द्वार पर यम दीपक प्रज्वलित करने की परंपरा है।
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